इस कारोबार में छिपा है जीवन में मिठास भरी तरक्की का राज़
शिमला//लुधियाना: 31 जुलाई 2023: (कार्तिका सिंह//देवभूमि स्क्रीन डेस्क)::जब कुछ ही बरस पहले पंजाब कृषि विश्व विद्यालय लुधियाना ने महिलायों के लिए सेल्फ हैल्प ग्रुप बनाने का अभियान चलाया तो देहात की बहुत सी महिलाएं आगे आईं। आरम्भ में जो काम चुने गए उनमें शहद बनाने और बेचने का काम सबसे अधिक लोकप्रिय हुआ। उन्होंने यूनिवर्सिटी की ट्रेनिंग के बाद सबंधित विभागों से सब्सिडी भी ली और छोटे छोटे क़र्ज़ भी लिए। क़र्ज़ लेते वक्त इसका खतरा भी उनके ज़हन में था कि पता नहीं क़र्ज़ लौटाया भी जाएगा या नहीं। कइयों ने तो अपने पति और घर परिवार से इस क़र्ज़ का पर्दा भी रखा था। लेकिन उनकी हिम्मत और संघर्ष ने रंग दिखाया। उन पर शीघ्र ही लक्ष्मी की कृपा होने लगी। उनके पास पास की आवक बढ़ती चल गई। क़र्ज़ भी उत्तर गए और बैंक बैलेंस भी बढ़ गया। सफलता देख कर उनके पति भी आगे आए। फिर सारे का सारा परिवार ही साथ देने लगा। देखते ही देखते उन सभी के ब्रांड इस्टेब्लिश हो आगे। इसी तरह के प्रयोग अन्य राज्यों में भी हुए।
पारदर्शी किसान सेवा याेजना, कृषि विभाग,उत्तरप्रदेश के सूत्रों ने बताया कि मानव जाति की सबसे बड़ी मित्र होने के साथ छोटी सी मधुमक्खी से प्रकृति के विकास में बड़ा योगदान दिया है। मधुमक्खी मधुर एवं पौष्टिक खाद्य पदार्थ अर्थात शहद का उत्पादन करती है। लीची नीबू प्रजातीय फलों, अमरूद, बेर, आड़ू, सेब इत्यादि एवं अन्य दलहनी एवं तिलहनी फसलों में मधुमक्खियों द्वारा परागण अत्यन्त महत्वपूर्ण है। परीक्षणों से यह भी जानकारी मिली है कि पर-परागण के बाद जो फसल पैदा होती है, उन दानों का वजन एवं पौष्टिकता अच्छी होती है। इससे स्पष्ट होता है कि मधुमक्खियाँ केवल शहद ही पैदा नहीं करती वरन फसलों की पैदावार बढ़ाकर खुशहाल बनाकर प्रदेश एवं देश को आर्थिक पौष्टिक खाद्यान्न उपलब्ध कराने में मद्द करती हैं।
प्रत्येक मधुमक्खी परिवार में तीन प्रकार की मक्खी पायी जाती हैं, जिनमें रानी, नर मक्खियाँ एवं कमेरी मक्खियाँ होती हैं। मधु विटामिन के तौर पर भी इस्तेमाल होती है और दवा के तौर पर भी। गौरतलब है कि मधु में जो निम्नलिखित तत्व पाये जाते हैं उनमें जल सबसे महत्वपूर्ण होता है।
इसके साथ ही इसमें 17 से 18 प्रतिशत फलों की चीनी (फ्रक्टोज) 42.2 प्रतिशत अंगूरी चीनी (ग्लूकोज) 34.71 प्रतिशत एल्यूमिनाइड 1.18 प्रतिशत और खनिज पदार्थ (मिनरल्स) 1.06 प्रतिशत। इसके अतिरिक्त मधु में विटामिन सी, विटामिन बी, सी, फॉलिक एसिड, साइट्रिक एसिड इत्यादि महत्वपूर्ण पदार्थ भी पूरी तरह से पाये जाते हैं। मधु भोजन के रूप में, मधु दवा के रूप में, एवं सौन्दर्य प्रसाधन के रूप में प्रयोग किया जाता है।
इस कारोबार के लिए मौन ग्रह की स्थापना भी करनी पड़ती है। आरम्भ में यह काम काफी म्हणत मांगता है लेकिन धीरे धीरे सब कुछ लाईन पर आ जाता है। मैदानी भाग में इस कार्य को शुरू करने का उपयुक्त समय अक्टूबर और फरवरी में होता है। इस समय एक स्थापित मौन वंशों से प्रथम वर्ष में 20 से 25 किलोग्राम दूसरे वर्ष से 35-40 किलोग्राम मधु का उत्पादन हो जाता है। स्थापना का प्रथम वर्ष ही कुछ महंगा पड़ता है। इसके बाद केवल प्रतिवर्ष 8 या 10 किलोग्राम चीनी एवं 0.500 किलोग्राम मोमी छत्ताधर का रिकरिंग खर्च रहता है। प्रति मौन वंश स्थापित करने में लगभग 2450 रूपये व्यय करना पड़ता है। उद्यान विभाग द्वारा तकनीकी सलाह मुफ्त दी जाती है। मधुमक्खी पालकों की मधुमक्खियों का प्रत्येक 10वें दिन निरीक्षण जो अत्यन्त आवश्यक है, विभाग में उपलब्ध मौन पालन में तकनीकी कर्मचारी से कराया जाता है। इस तरह कदम कदम पर सरकार के विभाग पूरा सहयोग और मार्गदर्शन भी देते हैं। इससे मधु का कारोबार और भी मुनाफे वाला हो जाता है।
इस कारोबार में महत्वपूर पड़ाव होता है मधु के निष्कासन का। इस कार्य को बहुत सावधानी के साथ और निपुणता से करना आवश्यक होता है। इसी से बढ़ता है वास्तविक उत्पादन भी।
आजकल आधुनिकतम ढंग से मधु निष्कासन का कार्य किया जाता है जिसमें अण्डे बच्चे का चैम्बर अलग होता है। शहद चैम्बर में मधु भर जाता है। मधु भर जाने पर मधु फ्रेम सील कर दिया जाता है। शील्ड भाग को चाकू से परत उतारकर मधु फ्रेम से निष्कासक यंत्र में रखने से तथा उसे चलाने से सेन्ट्रीफ्यूगल बल से शहद निकल आता है तथा मधुमक्खियों का पुनः मधु इकट्ठा करने के लिए दे दिया जाता है। इस प्रकार मधुमक्खी वंश का भी नुकसान नहीं होता है तथा मौसम होने पर लगभग पुनः शहद का उत्पादन भी बहुत अच्छी तरह से हो जाता है।
मधु के कारोबार का स्वदेशी बाज़ार भी पूरे देश में फैला हुआ है। इसका आर्थिक ढांचा भी अब बहुत बड़ा हो गया है। इसलिए मौन पालन (मधुमक्खी) का आर्थिक आय-व्यय विवरण भी बहुत तरकीब से रखना पड़ता है। लागत भी निकालनी होती है, म्हणत का मौल भी और मुनाफा भी। मधुमक्खी पालन का महत्व फलों, तरकारियों, दलहनी, तिलहनी फसलों पर परागण के द्वारा उपज की बढ़ोत्तरी तो होती ही है, इसके साथ-साथ इसके द्वारा उत्पादित मधु, मोम का लाभ भी मिलता है। इस तरह इस कारोबार में जुटे लोग जानते हैं कि यह कितनी बड़ी ऊंचाई तक पहुंच चुका है। बहुत से व्हाटसअप ग्रुप इसी कारोबार के लोइए बने हुए हैं जिनमें मधु के साथ साथ मधु मक्खियों की भी खरीदो फरोख्त होती है। ग्रुप में ऑनलाइन ही तस्वीरों और वीडियो से सौदा तय हो जाता है और पेमेंट भी हो जाती है।
स्थापना के प्रथम वर्ष में तीन मौन वंश से दो अतिरिक्त मौन वंश एवं 20-25 किलोग्राम मधु का उत्पादन करके लगभग 2000 से 2500 रूपये की आय प्रति वर्ष होती है। दूसरे वर्ष में केवल 300 से 350 रूपये व्यय करके मधु का उत्पादन करके लगभग 3500 रूपये से 4000 रूपये तक की प्रतिवर्ष आय की जा सकती है। इस तरह ज़ेह सिलसिला लगातार हर बरस बढ़ता चला जाता है।
अब इस सारे कारोबार पर एक विशेष पुस्तक भी आई है। हिमाचल के मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू ने आज उद्यान विभाग द्वारा प्रकाशित ‘व्यावसायिक मौन पालन’ पुस्तक का विमोचन भी किया है।
इस अवसर पर बागवानी, राजस्व एवं जनजातीय विकास मंत्री जगत सिंह नेगी, विधायक चंद्रशेखर, मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना, निदेशक बागवानी संदीप कदम, उद्यान विभाग के डॉ. कर्म सिंह वर्मा, डॉ. रंजन शर्मा तथा इस पुस्तक के लेखन डॉ. शरद गुप्ता व दमेश शर्मा उपस्थित थे।
इस पुस्तक में मधुमक्खी पालन हेतु नवीनतम जानकारियों को समाहित किया गया है। यह किताब प्रदेश के मौन पालकों को मात्र 100 रुपये में उपलब्ध होगी। इस किताब को निदेशालय उद्यान विभाग, शिमला से प्राप्त किया जा सकता है तथा विभाग के ई-उद्यान पोर्टल पर भी यह उपलब्ध रहेगी।