Thursday, October 10, 2019

एक अहसास है जो रूह से महसूस करो.....

हिमाचल के गांव बटलम्भर में मिले एक विशेष प्रेम की सत्य कथा
बटलम्भर:(हमीरपुर): 11 अक्टूबर 2019: (रेक्टर कथूरिया//देवभूमि स्क्रीन):: 
कब मिली थी कहाँ बिछड़ी थी हमें याद नहीं;
ज़िंदगी तुमको तो बस ख्वाब में देखा हमने। 
इस गीत में महसूस होते सत्य का अहसास ज़िंदगी में कई बार होता है। ऐसा लगता है ज़िंदगी अभी अभी मिली और पास से हो कर निकल गई लेकिन हम पहचान नहीं पाए। कुछ ऐसा ही अनुभव हुआ हिमाचल प्रदेश में जा कर। पहाड़ों की ऊंचाई इतनी की यूं लगता था जैसे सबसे ऊंची चोटी पर पहुंच गए हों। बहुत सी चिंताएं भी साथ में थीं लेकिन फिर भी एक अलौकिक सा अनुभव भी था। यूं लगता था जैसे पहाड़ों की चोटियां, वादियां और खाईयां कोई बात कर रही हों।
इसी तरह के माहौल से भरे हिमाचल प्रदेश के जिला हमीरपुर में एक गांव है बटलम्भर। इस गांव में किसी नज़दीकी परिवार के बेटे की शादी थी 8 और 9 अक्टूबर 2019 को। हम सोमवार बरात ले कर गए और मंगलवार सुबह तारों की छांव में लौटे। 
वहां एक काला कुत्ता पूँछ हिलाता हुआ पास आ गया। ज़रा सा सिर पर हाथ फेरा तो आंखों से भी बातें करने लगा। फिर टांगों से लिप्टन लगा। थोड़ा सा डांट कर हटाया तो वहीँ पास ही बैठ गया। इतने में चाय आ गई। साथ में पकौड़े भी थे। थोड़ा सा पकौड़ा उसे डाला झट से खा गया और फिर पूंछ हिलाने लगा। बहुत से और लोगों ने भी बुलाया। कईओं ने तो उसे डांट कर भी हटाया लेकिन वह नहीं हिला। बोल कर कुछ कहता रहा जो मुझे समझ नहीं आया। तो मुझे लगा न जाने किसी पूर्व जन्म का रिश्ता है। कभी यह इंसान रहा होगा या हम जानवर। लेकिन बार बार एक लोकप्रिय वह पंक्ति याद आती:
तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई,
यूं ही नहीं दिल लुभाता कोई।
सुबह तक यह काला कुत्ता आसपास, साथ साथ रहा। सोने का वक़्त आया तो मैंने अपनी चारपाई वहीं बाहर बरामदे में लगवा ली क्यूंकि मैं वहां प्रकृति के साथ रात के अहसास का अनुभव भी चाहता था। रात भर वह कुत्ता चारपाई के नीचे लेटा रहा। सुबह आते वक्त उसकी आँखों में आंसू थे। मैं भी उदास। वह गीत बहुत शिद्दत से याद आया--
जानवर आदमी से ज़्यादा वफादार है।
मैं इंसानी रिश्तों पर सोचने लगा जहां अब गिरगिट भी हार मानने लगा है। सोचता हूँ कभी इसे मिलने दोबारा वहां जा कर आऊं। आखिर इस काले कुत्ते के हावभाव ने मुझे उस वक़्त सांत्वना दी जब इंसानों का बदलता रवैया बेहद पीड़ा दे रहा था। आज भी उदासी होती है तो वही कुत्ता याद आ जाता है। अब एक बार फिर कुत्तों से लगाव होने लगा है। कुछ और यादें भी हैं वे किसी अलग पोस्ट में।--रेक्टर कथूरिया

(8 और 9 अक्टूबर 2019 की मध्य रात्रि को लिखा फिर 9 अक्टूबर दोपहर तक इसे मैच्योर करके रिराईट किया। लगता है अभी भी बहुत कुछ शेष रह गया। मन की जो मन में रही वह फिर कभी सही।-रेक्टर कथूरिया)