सभी भरोसे टूट गए--सभी अंदाज़े टूट गए
अजीब इतफाक है कि हादसे का शिकार हुई बस के चालक को जिस रस्ते पर चलने का लम्बा अनुभव था वही रास्ता अचानक मौत रास्ता बन गया। एक चालक के साथ मौत के मूंह में गए तीन दर्जन से अधिक लोगों की क्या मालूम था कि खुद उस अनुभवी चालक की मौत भी उसी रूट पर ही होनी थी, जिस पर वह 15 साल से बस चला रहा था। मल्ली मकोल में हुए बस हादसे में मारे गए चालक बलदेव परमार निवासी बल्लाह करीब पिछले पंद्रह साल से पालमपुर से आशापुरी रूट पर चलता था। उसके साथी भी उस पर गर्व करते थे और इस रूट पर अक्सर आने जाने वाले लोग भी उसी की बस पर भरोसा करते थे। लेकिन सोमवार का दिन उसकी जिंदगी का आखिर दिन बना। सभी भरोसे टूट गए---सभी अंदाज़े टूट गए। सूत्र बताते हैं कि 58 वर्ष के करीब पहुंचे बस चालक बलदेव परमार को अभी कुछ दिन बाद ही सेवानिवृत्त होना था, जबकि भाग्य के विधाता को यह मंजूर नहीं था। बताते हैं कि वह पिछले पंद्रह सालों से पालमपुर-आशापुरी रूट पर आता था। लेकिन होनी देखिए अपने इस रूट पर ही अपनी जिदंगी को खो बैठा। सूत्र बताते हैं कि मृतक चालक ने सवारियों से यह कहा था कि उनकी सीट पीछे की ओर सरक रही है, लेकिन सीट कैसे सरक रही है, यह न तो चालक को पता चला और न ही किसी सवारी को। जबकि सूत्र यह भी बताते हैं कि चढ़ाई होने के कारण बस पीछे हटी तो दोबारा चढ़ ही नहीं पाई। इसके बाद किसी को कुछ पता नहीं चला कि कौन कहां और बस कहां। इस दर्दनाक बस हादसे में घायल पांच लोग भी जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं। इनकी हालत भी काफी गंभीर है। होनी हो के ही रही। मौत ने बहुत से घरों के चिराग बुझा दिए। सब कुछ विधाता का किया धरा ही लगता है पर सवाल फिर भी उठते हैं। क्या विधाता ने देवभूमि पर ही अपना कोप दिखाना था ? आखिर इन पहाड़ी रास्तों में हुए बहुत से हादसों के बाद भी विदेशों की तर्ज़ पर वे आधुनिक उपकरण क्यूं नहीं लगाये गए जिनसे हादसे पूरी तरह नहीं तो काफी हद तक ज़रूर रुक जाते हैं।
इसी बीच पालमपुर बस हादसे की मजिस्ट्रेटी जांच के निर्देश दे दिए गए हैं। मीडिया ख़बरों के मुताबिक कांगड़ा जि़ले में पालमपुर उपमंडल के आशापुरी के पास हुई राज्य परिवहन निगम के बस हादसे में मरने वालों की संख्या 34 हो गई। मंगलवार 11 सितम्बर को सभी शव बरामद कर लिए गए। अकेले बस के नीचे जो लगभग 1000 फुट से अधिक गहरे जंगल में गिर गई थी, 18 शव बरामद किए गए जबकि 6 शव रात ही बरामद कर लिए गए थे। गौय्र्तलब है कि आरम्भिक सूचनायों में मरने वालों की संख्या 34, 35 एयर फिर 40 तक भी आई थी। पांच घायलों में से तीन को पालमपुर अस्पताल में दाखिल करवाया गया है और दो को टांडा मेडिकल कालेज में दाखिल करवाया गया जिनमें दो की हालत अभी गम्भीर बनी हुई है। प्रशासन ने मृतकों के परिवारों को 20 हजार और घायलों को पांच-पांच हजार फौरी राहत के तौर पर दिए हैं। प्रशासन ने अतिम संस्कार के लिए लकड़ी का प्रबंध भी किया है। शायद यही है इंसानी जिंदगी की कीमत।
कांगड़ा के उपायुक्त के आर भण्डारी ने कहा कि घटना की जांच के लिए मजिस्ट्रियल जांच के आदेश जारी कर दिये गए हैं और जांच अधिकार एसडीएम जयसिंहपुर को 15 दिन के अंदर रिपोर्ट देने के लिए कहा गया है। इस घटना में मरने वालों में बस का चालक परमार भी शामिल है। बस का परिचालक गम्भीर अवस्था में दाखिल करवाया गया है। बस में बैठी वन्दना कुमारी को सबसे पहले पालमपुर अस्पताल में पहुंचाया गया। उसने मीडिया को बताया कि बस मकोल के बाद जैसे ही आशापुरी की और बढ़ी तभी चढ़ाई में ड्राइवर की सीट कुछ पीछे हटी जिसके लिए चालक ने गाड़ी बंद कर दी और जैसे ही दौबारा गाड़ी स्टार्ट की तो गाड़ी आगे की बजाय पीछे हटने लगी और गहरी खाई में जा गिरी। रोते-चिलाते कुछ लोग यह कह रहे थे कि अकेले आशापुरी गांव के 22 लोग मारे गए हैं जो उनके लिए किसी बड़े सदमे से कम नहीं है। देवभूमि के लोगों को अपने अपने देव से इसका गिला उम्र भर बना रहेगा। उन्हें इसका जवाब नहीं मिलने वाला तब भी सवाल वे करते रहेंगे।
हादसे के कारणों को कुरेदने की कोशिशें जारी हैं। बस अड्डा प्रभारी ने कुछ चालकों द्वारा किसी न किसी बहाने से अड्डे पर न आने को भी जिम्मेवार ठहराया। उनका कहना था कि कई चालक बस चैक न करवाकर अपनी मौत को दावत दे देते हैं। ऐसा ही कुछ इस बस के साथ भी हुआ। यह चालक भी पालमपुर नहीं आया था और गाड़ी चैक नहीं हो पाई थी। हो सकता है गाड़ी में किसी प्रकार की खामी हो जो इस बड़े हादसे का कारण बनी है। इस फ्लू ने हादसों के के एक नए फ्लू की तरफ ध्यान खींचा है। बस को चैक न करने के यह सिलसिला कई अन्य राज्यों में भी जारी है।
इस हादसे के बाद संतोष की बात यह रही कि आम हादसे का शिकार हुए लोगों को बचाने के लिए बढ़ चढ़ कर आगे आए।। इस घटना में स्थानीय लोगों को सहयोग जहां सराहनीय रहा वहीं पुलिस फायर ब्रिगेड और सेना के जवानों ने भी अहम भूमिका रिभाई। उनकी बदौलत ही संकरी पहाड़ी में खतरनाक रास्ते से इस बस तक पहुंचा जा सका ओर शवों को निकालने में मदद मिली।
कांगडा के उपायुक्त के अलावा पुलिस अधीक्षक और पालमपुर और जयसिंहपुर के एसडीएम और राजगीरी के विधायक कैप्टन आत्माराम और बड़ी संख्या में अधिकारी और स्थानीय लोगों ने वर्षा के बाबजूद राहत कार्यों का संचालन किया जो सराहनीय है। कर्त्तव्य परायणता और इंसानियत की यह मिसाल इस निराशा के अवसर पर भी रौशनी देती है। मीडिया ने इस हादसे के भी बहुत से पहलू उजागर किया हैं अब देखना है की प्रशासन इस कवरेज का फायदा उठा कर हादसे का शिकार बनने वाले कारणों को कितनी जल्द दूर करता है !
पालमपुर के पास मंगलवार को खड्ड में गिरी बस को देखते लोग(दैनिक ट्रिब्यून से साभार) |
पंजाब केसरी में प्रकाशित खबर |
इसी बीच पालमपुर बस हादसे की मजिस्ट्रेटी जांच के निर्देश दे दिए गए हैं। मीडिया ख़बरों के मुताबिक कांगड़ा जि़ले में पालमपुर उपमंडल के आशापुरी के पास हुई राज्य परिवहन निगम के बस हादसे में मरने वालों की संख्या 34 हो गई। मंगलवार 11 सितम्बर को सभी शव बरामद कर लिए गए। अकेले बस के नीचे जो लगभग 1000 फुट से अधिक गहरे जंगल में गिर गई थी, 18 शव बरामद किए गए जबकि 6 शव रात ही बरामद कर लिए गए थे। गौय्र्तलब है कि आरम्भिक सूचनायों में मरने वालों की संख्या 34, 35 एयर फिर 40 तक भी आई थी। पांच घायलों में से तीन को पालमपुर अस्पताल में दाखिल करवाया गया है और दो को टांडा मेडिकल कालेज में दाखिल करवाया गया जिनमें दो की हालत अभी गम्भीर बनी हुई है। प्रशासन ने मृतकों के परिवारों को 20 हजार और घायलों को पांच-पांच हजार फौरी राहत के तौर पर दिए हैं। प्रशासन ने अतिम संस्कार के लिए लकड़ी का प्रबंध भी किया है। शायद यही है इंसानी जिंदगी की कीमत।
कांगड़ा के उपायुक्त के आर भण्डारी ने कहा कि घटना की जांच के लिए मजिस्ट्रियल जांच के आदेश जारी कर दिये गए हैं और जांच अधिकार एसडीएम जयसिंहपुर को 15 दिन के अंदर रिपोर्ट देने के लिए कहा गया है। इस घटना में मरने वालों में बस का चालक परमार भी शामिल है। बस का परिचालक गम्भीर अवस्था में दाखिल करवाया गया है। बस में बैठी वन्दना कुमारी को सबसे पहले पालमपुर अस्पताल में पहुंचाया गया। उसने मीडिया को बताया कि बस मकोल के बाद जैसे ही आशापुरी की और बढ़ी तभी चढ़ाई में ड्राइवर की सीट कुछ पीछे हटी जिसके लिए चालक ने गाड़ी बंद कर दी और जैसे ही दौबारा गाड़ी स्टार्ट की तो गाड़ी आगे की बजाय पीछे हटने लगी और गहरी खाई में जा गिरी। रोते-चिलाते कुछ लोग यह कह रहे थे कि अकेले आशापुरी गांव के 22 लोग मारे गए हैं जो उनके लिए किसी बड़े सदमे से कम नहीं है। देवभूमि के लोगों को अपने अपने देव से इसका गिला उम्र भर बना रहेगा। उन्हें इसका जवाब नहीं मिलने वाला तब भी सवाल वे करते रहेंगे।
हादसे के कारणों को कुरेदने की कोशिशें जारी हैं। बस अड्डा प्रभारी ने कुछ चालकों द्वारा किसी न किसी बहाने से अड्डे पर न आने को भी जिम्मेवार ठहराया। उनका कहना था कि कई चालक बस चैक न करवाकर अपनी मौत को दावत दे देते हैं। ऐसा ही कुछ इस बस के साथ भी हुआ। यह चालक भी पालमपुर नहीं आया था और गाड़ी चैक नहीं हो पाई थी। हो सकता है गाड़ी में किसी प्रकार की खामी हो जो इस बड़े हादसे का कारण बनी है। इस फ्लू ने हादसों के के एक नए फ्लू की तरफ ध्यान खींचा है। बस को चैक न करने के यह सिलसिला कई अन्य राज्यों में भी जारी है।
इस हादसे के बाद संतोष की बात यह रही कि आम हादसे का शिकार हुए लोगों को बचाने के लिए बढ़ चढ़ कर आगे आए।। इस घटना में स्थानीय लोगों को सहयोग जहां सराहनीय रहा वहीं पुलिस फायर ब्रिगेड और सेना के जवानों ने भी अहम भूमिका रिभाई। उनकी बदौलत ही संकरी पहाड़ी में खतरनाक रास्ते से इस बस तक पहुंचा जा सका ओर शवों को निकालने में मदद मिली।
कांगडा के उपायुक्त के अलावा पुलिस अधीक्षक और पालमपुर और जयसिंहपुर के एसडीएम और राजगीरी के विधायक कैप्टन आत्माराम और बड़ी संख्या में अधिकारी और स्थानीय लोगों ने वर्षा के बाबजूद राहत कार्यों का संचालन किया जो सराहनीय है। कर्त्तव्य परायणता और इंसानियत की यह मिसाल इस निराशा के अवसर पर भी रौशनी देती है। मीडिया ने इस हादसे के भी बहुत से पहलू उजागर किया हैं अब देखना है की प्रशासन इस कवरेज का फायदा उठा कर हादसे का शिकार बनने वाले कारणों को कितनी जल्द दूर करता है !
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